Friday, August 1, 2014
Wednesday, July 30, 2014
Saturday, July 26, 2014
Friday, July 25, 2014
Thursday, July 24, 2014
Tuesday, July 22, 2014
Monday, July 21, 2014
अंततः जोशी दम्पति बर्खास्त
आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में सरकार ने लम्बी प्रक्रिया के पश्चात अरविन्द और टीनू जोशी को बर्खास्त कर दिया है। अरविन्द जोशी मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग में प्रमुख सचिव के पद पर थे और उनकी पत्नी टीनू जोशी महिला एवं बाल विकास विभाग में प्रमुख सचिव थीं। वर्ष 2010 में इन अधिकारीयों के घर पर आयकर विभाग ने छापा मार कर तीन करोड़ रुपये नगद और करोड़ों रुपए की अनुपातहीन चल/अचल संपत्ति उजागर करी थी। पर क्या भ्रष्टाचार द्वारा इस प्रकार अकूत संपत्ति अर्जित करने पर सेवा से बर्खास्तगी काफी है ? इस प्रकार के मामलों में कारावास और अर्थदंड की सजा के साथ भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित संपत्ति राजसात करने का प्रावधान भी होना चाहिए। नहीं तो अपराधी थोड़ी जेल और अर्थदंड की सजा काट कर इस संपत्ति से जीवन भर मौज उड़ाएंगे।
Monday, April 28, 2014
Saturday, April 26, 2014
कचरा हो गयी 7 करोड़ की धान
आज सुबह एक समाचार पढ़ कर दिल को बहुत ठेस पहुंची। समाचार का शीर्षक है , "कचरा हो गयी 7 करोड़ की धान" । जिस देश में लाखों घरों में दो वक्त चूल्हा नहीं जलता, वहॉँ इतने आनाज की बर्बादी ! सच है, विकसित देश इस लिये विकसित हैं क्यों कि उनके नागरिकों की सोच विकसित है। अब इस धान की बर्बादी की छानबीन के लिये एक समिति बनेगी, जिसकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया जायेगा और सब इस को भूल जायेंगे।
मुझे एक कहानी याद आ रही है जो किसी विकसित देश और हमारे देश के बीच का अन्तर स्पष्ट करती है। कहानी इस प्रकार है। कुछ भारतीय जर्मनी गये। वहां पहले से रह रहे उनके भारतीय मित्रों ने उन को खाने का न्योता दिया और वे सभी एक जर्मन भोजनालय में गये। उन भारतियों ने अपने मेहमानों का सत्कार करने के लिये बहुत सारा भोजन मंगवा लिया, परन्तु वे लोग सारा भोजन खा नहीँ सके और कॉफ़ी भोजन बच गया । उनके पास वाले टेबल पर दो जर्मन महिलाएं बैठी थीं जो इन भारतीयोँ के व्यवहार को देख कर खुश नहीं थीं। जब ये लोग अपना बिल चुकाने लगे तो उन महिलाओँ ने भोजनालय के मैनेजर से शिकायत की कि इन लोगों ने बहुत सा खाना जूठा छोङ दिया है। भारतियों ने कहा कि उन्होने पूरे भोजन के पैसे दिये हैं। महिलाओं ने उत्तर दिया, "आपने भोजन के पैसे ज़रूर दिए हैं, परन्तु खाने के लिये। ये भोजन हमारे देश का है और इसको नष्ट करने का आप को कोई अधिकार नहीं है।"
काश हमारे देश के नागरिक भी अपने देश के संसाधनों के बारे में इसी तरह सोचते !
मुझे एक कहानी याद आ रही है जो किसी विकसित देश और हमारे देश के बीच का अन्तर स्पष्ट करती है। कहानी इस प्रकार है। कुछ भारतीय जर्मनी गये। वहां पहले से रह रहे उनके भारतीय मित्रों ने उन को खाने का न्योता दिया और वे सभी एक जर्मन भोजनालय में गये। उन भारतियों ने अपने मेहमानों का सत्कार करने के लिये बहुत सारा भोजन मंगवा लिया, परन्तु वे लोग सारा भोजन खा नहीँ सके और कॉफ़ी भोजन बच गया । उनके पास वाले टेबल पर दो जर्मन महिलाएं बैठी थीं जो इन भारतीयोँ के व्यवहार को देख कर खुश नहीं थीं। जब ये लोग अपना बिल चुकाने लगे तो उन महिलाओँ ने भोजनालय के मैनेजर से शिकायत की कि इन लोगों ने बहुत सा खाना जूठा छोङ दिया है। भारतियों ने कहा कि उन्होने पूरे भोजन के पैसे दिये हैं। महिलाओं ने उत्तर दिया, "आपने भोजन के पैसे ज़रूर दिए हैं, परन्तु खाने के लिये। ये भोजन हमारे देश का है और इसको नष्ट करने का आप को कोई अधिकार नहीं है।"
काश हमारे देश के नागरिक भी अपने देश के संसाधनों के बारे में इसी तरह सोचते !
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