Saturday, April 26, 2014

कचरा हो गयी 7 करोड़ की धान

आज सुबह एक समाचार पढ़ कर दिल को बहुत ठेस पहुंची। समाचार का शीर्षक है , "कचरा हो गयी 7 करोड़ की धान" । जिस देश में लाखों घरों में दो वक्त चूल्हा नहीं जलता, वहॉँ इतने आनाज की बर्बादी ! सच है, विकसित देश इस लिये विकसित हैं क्यों कि उनके नागरिकों की सोच विकसित है। अब इस धान की बर्बादी की छानबीन के लिये एक समिति बनेगी, जिसकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया जायेगा और सब इस को भूल जायेंगे।

मुझे एक कहानी याद आ रही है जो किसी विकसित देश और हमारे देश के बीच का अन्तर स्पष्ट करती है। कहानी इस प्रकार है।  कुछ भारतीय जर्मनी गये।  वहां पहले से रह रहे उनके भारतीय मित्रों ने उन को खाने का न्योता दिया और वे सभी एक जर्मन भोजनालय में गये।  उन भारतियों ने अपने मेहमानों का सत्कार करने के लिये बहुत सारा भोजन मंगवा लिया, परन्तु वे लोग सारा  भोजन खा नहीँ  सके और कॉफ़ी भोजन बच गया । उनके पास वाले टेबल पर दो जर्मन महिलाएं बैठी थीं जो इन भारतीयोँ  के  व्यवहार को देख कर खुश नहीं थीं। जब ये लोग अपना बिल चुकाने लगे तो उन महिलाओँ ने भोजनालय के मैनेजर से शिकायत की कि इन लोगों ने बहुत सा खाना जूठा छोङ दिया है।  भारतियों ने कहा कि उन्होने पूरे भोजन के पैसे दिये हैं।  महिलाओं ने उत्तर दिया, "आपने भोजन के पैसे ज़रूर दिए हैं, परन्तु खाने के लिये।  ये भोजन हमारे देश का है और इसको नष्ट करने का आप को कोई अधिकार नहीं है।"

काश हमारे देश के नागरिक भी अपने देश के संसाधनों के बारे में इसी तरह सोचते !

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